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अखबारों पर "कोरोना वायरस" का प्रभाव...

अखबारो की दुनिया भी निराली है ...जब २००७ में मैंने अख़बार जॉईन किया तब अख़बार अपने चरम पर थे काम में भी मज़ा था धीरे धीरे विकास की गति कम होने लगी दूसरे पूरक साधनो का उपयोग बढ़ गया सोशल साइट के आ जाने से खबरों की गति बढ़ गई व समय घट गया कहने का मतलब है खबरें जल्द मिलने लगी ... अखबारो ने eपेपर स्टार्ट किए... फिर आया मंदी का दौर काम करने वाली की छटनी की जाने लगी । फिर ४ लोगों का काम दो से कराया जाने लगा... सेलरी बढ़ाने के नाम पर ठनठन गोपाल । हालत और बिगडे रियल एस्टेट धराशायी हुआ तो अखबारो को मिलने वाले विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा जाता रहा .. फिर यही हाल दूसरे सेग्मेंट का हुआ ... फिर डिस्काउंट स्कीमें बाँट कर विज्ञापन लिए जाने लगे। विज्ञापन दाता अब तक चालाक हो चुके थे वो भी डिस्काउंट का इंतज़ार करने लगे । अखबारो ने नई रणनीति अपनाई एक्जिबिशन ,फ़ेयर, डेटा शेयरिंग, कर क्लाइयंट को लुभाया गया । पठनीय सामग्री परोसने का प्रयास किया विशेषांक निकले ।एजुकेशन ,लाइफ़स्टाइल, रियल स्टेट मेडिकल और न जाने क्या क्या  अब संकट आया कोरोंना का जिसने अख़बार और उसमें काम करने वालो पर ये क़हर मचा दिया ये ...