ग्रीन कार्ड का सपना—अब "गोल्ड" में बदल गया!
अमेरिका में बसने का सपना अब "स्किल" पर नहीं, "बिल" पर टिका है। पहले लोग मेहनत करके ग्रीन कार्ड के लिए लाइन में लगते थे, अब सीधा ट्रम्प साहब ने गोल्ड कार्ड निकाल दिया—मतलब, अगर आपकी जेब में 44 करोड़ हैं, तो अमेरिका के दरवाजे आपके लिए रेड कार्पेट बिछाए खड़े हैं। और अगर नहीं हैं? तो बस... "Your case is under review" का मैसेज चेक करते रहिए।
अब तक होता यह था कि भारतीय इंजीनियर, डॉक्टर, साइंटिस्ट, और MBA वाले लोग H-1B वीजा लेकर अमेरिका पहुंचते, फिर स्पॉन्सर ढूंढकर ग्रीन कार्ड की कतार में खड़े हो जाते। कई तो इस कतार में बूढ़े हो जाते, लेकिन अमेरिका कहता—"थोड़ा और इंतजार कर लो, अभी तुम्हारी एप्लिकेशन प्रोसेस में है!"
लेकिन ट्रम्प साहब का नया फरमान सुनकर इन सबका दिल टूट गया। सोचिए, जो लोग EB-2 और EB-3 में फंसे थे, वो EB-5 की तरफ उम्मीद से देख रहे थे कि चलो 8-9 करोड़ में काम बन जाएगा। अब उन्हें बोला जा रहा है—"भाई, इतने में कुछ नहीं होगा, सीधा 44 करोड़ निकालो, नहीं तो लाइन में ही खड़े रहो!"
अब भारतीयों के सामने दो ही रास्ते बचे हैं—या तो करोड़पति बन जाओ, या फिर "पेंडिंग स्टेटस" के सहारे जिंदगी गुजार दो। कोई IT इंजीनियर अपने बॉस से सैलरी बढ़ाने की बात करे तो बॉस कहेगा—"क्या तुम गोल्ड कार्ड लेने की सोच रहे हो?" उधर, NRI रिश्तेदार अब भारत फोन करके यही कहेंगे—"बेटा, तुम्हारी टॉप यूनिवर्सिटी की डिग्री अच्छी है, लेकिन अगर बैंक बैलेंस 44 करोड़ नहीं है, तो अमेरिका भूल जाओ!"
अमेरिका की नई इमिग्रेशन पॉलिसी अब सिधा-सिधा कह रही है—"टैलेंट अपनी जगह, लेकिन पैसा लाओगे तभी जगह मिलेगी!" यानी, अब भारतीयों को अपने बच्चे के भविष्य के लिए दो ही चीजें प्लान करनी होंगी—या तो उसे अरबपति बनाओ, या फिर ग्रीन कार्ड की वेटिंग लिस्ट में डालकर भगवान भरोसे
छोड़ दो!
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