1. भारत का मीडिया अभी किसके साथ है?
भारत में मीडिया का एक बड़ा वर्ग सरकार समर्थक रुख अपनाए हुए दिखता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पूरा मीडिया पक्षपाती हो गया है। भारतीय मीडिया को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
(A) सरकार समर्थक मीडिया (Pro-Government Media)
- इस वर्ग में मुख्य रूप से बड़े टीवी चैनल, समाचार पत्र और डिजिटल पोर्टल शामिल हैं, जो सत्ताधारी दल (अभी भाजपा) के समर्थन में खुले तौर पर रिपोर्टिंग करते हैं।
- विशेषता: इनकी खबरों में सरकार की नीतियों की प्रशंसा अधिक दिखती है, विपक्ष को नकारात्मक रूप में पेश किया जाता है।
- उदाहरण: ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक टीवी, इंडिया टीवी, एबीपी न्यूज़ जैसे चैनल अकसर भाजपा की नीतियों के पक्ष में कवरेज करते हैं।
(B) विपक्ष समर्थक मीडिया (Pro-Opposition Media)
- यह वर्ग अल्पसंख्यक है और अधिकांश डिजिटल पोर्टल और कुछ प्रिंट मीडिया संस्थान इसमें शामिल हैं। ये सरकार की आलोचना को प्राथमिकता देते हैं।
- विशेषता: ये सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं और विपक्ष को ज्यादा मंच देते हैं।
- उदाहरण: NDTV (अब अडानी समूह के अधिग्रहण के बाद इसकी निष्पक्षता को लेकर सवाल हैं), द वायर, द क्विंट जैसे पोर्टल सरकार की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करते हैं।
(C) निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया (Neutral Media)
- भारत में ऐसे मीडिया संस्थान बहुत कम बचे हैं जो निष्पक्ष और तटस्थ रिपोर्टिंग करते हैं।
- विशेषता: ये सत्ता और विपक्ष दोनों की नीतियों का विश्लेषण तथ्यों के आधार पर करते हैं।
- उदाहरण: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, बीबीसी हिंदी, और कुछ स्वतंत्र डिजिटल पोर्टल जैसे न्यूज़लॉन्ड्री।
2. क्या मीडिया पर सरकार का पूरा कंट्रोल है?
सरकार का मीडिया पर सीधा नियंत्रण नहीं है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कई माध्यमों से प्रभाव पड़ता है:
(A) विज्ञापन और वित्तीय दबाव
- सरकार मीडिया संस्थानों को भारी मात्रा में सरकारी विज्ञापन देती है, जिससे उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा निर्भर होता है।
- जो मीडिया सरकार की आलोचना करता है, उनके विज्ञापन काट दिए जाते हैं।
- उदाहरण: द वायर और द प्रिंट जैसे पोर्टल सरकारी विज्ञापन से वंचित रहते हैं।
(B) मीडिया मालिकों पर दबाव
- सरकार या उससे जुड़े उद्योगपतियों द्वारा मीडिया संस्थानों को खरीद लिया जाता है या उन पर वित्तीय दबाव डाला जाता है।
- उदाहरण: एनडीटीवी का अडानी ग्रुप द्वारा अधिग्रहण किया जाना। इससे उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठे।
(C) सरकारी एजेंसियों का डर
- सरकार असहमति दिखाने वाले पत्रकारों और संस्थानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर विभाग (IT) जैसी एजेंसियों का उपयोग कर दबाव बनाती है।
- उदाहरण: द वायर के संपादक के घर पर IT की छापेमारी।
(घ) मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानून
- मीडिया को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कई कानूनों का उपयोग किया:
- IT नियम 2021: सरकार को सोशल मीडिया पोस्ट हटाने और पोर्टल्स को ब्लॉक करने का अधिकार मिला।
- यूएपीए और देशद्रोह कानून: आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर देशद्रोह का मुकदमा किया जाता है।
3. सरकार और नेताओं से पत्रकारों के संबंध
भारत में पत्रकारों और नेताओं के संबंध जटिल होते जा रहे हैं:
(A) पक्षपातपूर्ण संबंध
- कई पत्रकार किसी राजनीतिक दल के समर्थक हो गए हैं। वे खुलकर किसी दल का प्रचार करते हैं।
- उदाहरण: अर्णब गोस्वामी (रिपब्लिक टीवी) को भाजपा समर्थक पत्रकार माना जाता है, जबकि रवीश कुमार (पूर्व NDTV) को विपक्ष समर्थक।
(B) सुविधा-संपर्क वाला पत्रकारिता का दौर
- कुछ पत्रकार नेताओं के करीबी हो गए हैं। उन्हें खबरें लीक करवाई जाती हैं, ताकि वे इसे "एक्सक्लूसिव" ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में दिखा सकें।
- इसके बदले में ये पत्रकार सरकार की नीतियों का समर्थन करते हैं।
(C) ईमानदार और संघर्षशील पत्रकार
- सरकार और नेताओं से दूर रहकर निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को धमकियां दी जाती हैं।
- उदाहरण: गौरी लंकेश (कन्नड़ पत्रकार) की हत्या।
गौरी लंकेश की हत्या के अलावा, भारत में कई अन्य पत्रकारों की भी उनके कार्यों के कारण हत्या की गई है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार:
-
1997 से 2020 के बीच: भारत में कुल 74 पत्रकारों की हत्या हुई।
-
2014 से 2020 के बीच: 27 पत्रकार मारे गए।
-
2021 में: कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) की रिपोर्ट के अनुसार, पाँच पत्रकारों की हत्या उनके काम के कारण की गई।
-
2023 में: इंडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इनिशिएटिव की रिपोर्ट के मुताबिक, पाँच पत्रकारों की हत्या हुई और करीब 226 पत्रकारों को निशाना बनाया गया।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में पत्रकारों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है, और निष्पक्ष पत्रकारिता करना कई बार जानलेवा साबित हुआ है।
-
निष्कर्ष
- भारत में मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार समर्थक हो गया है, लेकिन कुछ संस्थान अभी भी निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं।
- सरकार का मीडिया पर सीधा नहीं बल्कि वित्तीय, कानूनी और प्रशासनिक रूप से अप्रत्यक्ष नियंत्रण है।
- पत्रकारिता का एक बड़ा वर्ग नेताओं का करीबी हो गया है, जबकि कुछ पत्रकार अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।
समस्या: मीडिया का ध्रुवीकरण लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे जनता को निष्पक्ष सूचना नहीं मिल पाती।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें