"चीन: ड्रैगन की दाढ़ में फंसी दुनियादारी"
एक ज़माना था जब चीन को ‘रहस्यमयी देश’ कहा जाता था, लेकिन अब यह ‘रहस्यमयी’ कम और ‘राक्षसी’ ज्यादा नजर आता है। 1.4 अरब की आबादी वाला यह देश अब जनसंख्या से नहीं, अपने ‘जनरल’ और ‘जनरल स्टोर’ से दुनिया पर राज कर रहा है।
चीन ने दुनिया को नूडल्स, चॉपस्टिक और पांडा दिए, लेकिन बदले में मोबाइल ऐप्स का जाल, सस्ते माल का भंडार और 'स्पाई बलून' उड़ाकर सबको हलकान कर दिया। दुनिया जब प्यार-मोहब्बत की बात कर रही थी, तब चीन बैलून छोड़-छोड़कर अमेरिका के कान खड़े कर रहा था।
"वन चाइल्ड पॉलिसी" चलाकर चीन ने बच्चों को विलुप्त प्रजाति में बदल दिया और जब आबादी घटी, तो "अब दो बच्चे" का फरमान जारी कर दिया। पर बच्चे पैदा करने से पहले बंदे को बायोमेट्रिक डाटा, पार्टी की अनुमति और शायद शी जिनपिंग की परमीशन भी लेनी पड़े।
चीन की इकॉनमी इतनी तेज़ दौड़ी कि चीता भी शर्मा जाए। पहले ‘सिल्क रूट’ से दुनिया को सिल्क बेची, अब ‘बेल्ट एंड रोड’ से सबकी जेब काट रहा है। अफ्रीका से लेकर एशिया तक कर्ज देकर गरीब देशों को ‘ईएमआई’ की जंजीर में जकड़ लिया। इसे कहते हैं "मेड इन चाइना" कर्ज जाल!
धर्म की बात करें तो चीन में भगवान से पहले पार्टी की इजाजत लेनी पड़ती है। ईश्वर की भक्ति कम और शी जिनपिंग की भक्ति ज्यादा जरूरी है। जो विरोध करे, उसे 'रि-एजुकेशन कैंप' में मुफ्त में तमीज सिखाई जाती है। धर्म की स्वतंत्रता का ऐसा ‘चाइनीज मॉडल’ कि देवता भी छुट्टी पर चले जाएं।
और सेना? वाह! चीन की सेना इतनी बड़ी है कि अगर सैनिकों को लाइन में खड़ा कर दें तो दुनिया का एक चक्कर लगा लें। और रक्षा बजट इतना तगड़ा कि पड़ोसी देश इसे देखकर ही 'शांति वार्ता' के लिए दौड़ पड़ते हैं।
आखिर में, चीन को समझना हो तो बस इतना जान लीजिए – ये वही देश है, जो "मेड इन चाइना" खिलौने में पेंट कम, लेड ज्यादा लगाता है और अपने "फाइव स्टार होटल" में ‘फ्री इंटरनेट’ के नाम पर ‘फ्री सर्विलांस’ देता है। ड्रैगन है साहब, बस आग ही नहीं उगलता, डेटा भी निगल जाता है!
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