2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जिसे भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक माना जाता है, 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सामने आया। यह घोटाला दूरसंचार मंत्रालय द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से जुड़ा था।
2जी स्पेक्ट्रम क्या है?
स्पेक्ट्रम एक रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड है, जिसका उपयोग मोबाइल नेटवर्क और डेटा सेवाओं के लिए किया जाता है।
2जी स्पेक्ट्रम उस समय की मोबाइल तकनीक के लिए आवश्यक था।
इसे दूरसंचार कंपनियों को लाइसेंस के रूप में आवंटित किया जाता है ताकि वे मोबाइल सेवाएं प्रदान कर सकें।
घोटाले की पृष्ठभूमि
1. दूरसंचार नीति और लाइसेंस आवंटन:
2जी स्पेक्ट्रम को "पहले आओ, पहले पाओ" (First-Come, First-Serve) नीति के तहत आवंटित किया गया।
इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता और समान अवसर देना था।
2. 2008 में घोटाला:
तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में भारी गड़बड़ी की।
कंपनियों को बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित किए गए।
घोटाला कैसे हुआ?
1. कम कीमत पर लाइसेंस आवंटन:
2008 में, 2जी स्पेक्ट्रम की कीमत 2001 के आधार मूल्य पर तय की गई, जबकि उस समय इसकी बाजार कीमत काफी बढ़ चुकी थी।
यह अनुमान लगाया गया कि स्पेक्ट्रम की बिक्री में सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
2. कृत्रिम रूप से प्रतियोगिता को कम करना:
पात्रता मानदंडों में बदलाव करके कुछ चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया।
कई कंपनियां, जिनका दूरसंचार क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था, को भी लाइसेंस दिए गए।
3. गोपनीय जानकारी का दुरुपयोग:
स्पेक्ट्रम आवंटन की तारीख और समय की जानकारी पहले से कुछ कंपनियों को दी गई।
कुछ कंपनियों ने समय सीमा से पहले ही आवेदन दाखिल कर दिए, जिससे वे लाभान्वित हुईं।
4. फर्जी कंपनियों को लाइसेंस:
कुछ फर्जी कंपनियां केवल लाइसेंस हासिल करने के लिए बनाई गई थीं।
बाद में इन कंपनियों ने अपना लाइसेंस बड़ी कंपनियों को ऊंचे दाम पर बेच दिया।
मुख्य आरोपी
1. ए. राजा:
तत्कालीन दूरसंचार मंत्री पर स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं का मुख्य आरोप लगा।
उन्होंने नीतियों में बदलाव कर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया।
2. कुछ कंपनियां और अधिकारी:
यूनिटेक, स्वान टेलीकॉम और अन्य कंपनियों पर भी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा।
अन्य सरकारी अधिकारियों और दलालों को भी जांच के दायरे में लाया गया।
जांच और कानूनी प्रक्रिया
1. सीएजी रिपोर्ट (2010):
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में इस घोटाले का खुलासा हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हुआ।
2. सीबीआई जांच:
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने ए. राजा सहित कई अधिकारियों और कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
3. 2012 में लाइसेंस रद्द:
सुप्रीम कोर्ट ने 122 स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द कर दिए, जो 2008 में आवंटित किए गए थे।
यह फैसला "भ्रष्टाचार और अनियमितताओं" के आधार पर लिया गया।
4. 2017 में सभी आरोपियों की रिहाई:
एक विशेष सीबीआई अदालत ने 2017 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया, क्योंकि ठोस सबूतों के अभाव में अपराध साबित नहीं हुआ।
घोटाले का प्रभाव
1. सियासी असर:
यूपीए सरकार की छवि को गहरा नुकसान पहुंचा।
यह घोटाला 2014 में कांग्रेस की चुनावी हार का एक बड़ा कारण बना।
2. आर्थिक असर:
सरकार और आम जनता के बीच विश्वास की कमी।
विदेशी निवेशकों ने भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में रुचि कम दिखाई।
3. सुधार:
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई गई।
अब स्पेक्ट्रम की बिक्री नीलामी के माध्यम से होती है, ताकि सरकारी खजाने को उचित लाभ मिल सके।
निष्कर्ष
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला भारतीय राजनीति और प्रशासन में पारदर्शिता की कमी का प्रतीक बना। यह घोटाला यह दर्शाता है कि कैसे सरकारी नीतियों का दुरुप
योग किया जा सकता है। हालांकि बाद में अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन यह मामला भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता की जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भांडफोड़ कैसे हुआ
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का भंडाफोड़ एक सुनियोजित जांच और मीडिया रिपोर्ट्स के माध्यम से हुआ। यह घोटाला 2008 में हुआ था, लेकिन इसका पर्दाफाश 2010 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट और मीडिया के व्यापक कवरेज के जरिए हुआ। आइए जानते हैं, यह कैसे सामने आया:
1. आरटीआई (सूचना का अधिकार) का उपयोग
2008 में, आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता ने दूरसंचार मंत्रालय के रिकॉर्ड की जानकारी मांगी।
आरटीआई से पता चला कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन "पहले आओ, पहले पाओ" की नीति के तहत हुआ था, लेकिन इसमें पारदर्शिता नहीं थी।
2. स्वान और यूनिटेक कंपनियों पर शक
जिन कंपनियों को लाइसेंस मिला, उनमें से कुछ का टेलीकॉम सेक्टर में कोई अनुभव नहीं था।
जैसे स्वान टेलीकॉम ने लाइसेंस मिलने के बाद इसे एतिसलात (Etisalat) नामक विदेशी कंपनी को बहुत ऊंचे दाम पर बेच दिया।
इसी तरह यूनिटेक वायरलेस ने भी अपने लाइसेंस को नॉर्वे की कंपनी टेलीनॉर को मुनाफे में बेच दिया।
इन सौदों से यह शक पुख्ता हुआ कि लाइसेंस आवंटन में गड़बड़ी हुई है।
3. सीएजी रिपोर्ट का खुलासा (2010)
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि:
2जी स्पेक्ट्रम को 2001 की कीमतों पर बेचा गया, जबकि 2008 में इसकी बाजार कीमत कई गुना ज्यादा थी।
इस गलत प्रक्रिया के कारण सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर नियमों को तोड़ने और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया।
4. मीडिया और विपक्ष का दबाव
मीडिया (जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस) ने इस घोटाले की लगातार रिपोर्टिंग की।
विपक्षी दलों, खासकर भाजपा और वाम दलों ने संसद में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया।
2010 के अंत तक यह मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि ए. राजा को दूरसंचार मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा।
5. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं
सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ जैसे सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच का आदेश दिया और कहा कि स्पेक्ट्रम आवंटन में पारदर्शिता का घोर अभाव था।
6. सीबीआई जांच
2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए सीबीआई को आदेश दिया।
सीबीआई ने ए. राजा, स्वान टेलीकॉम, यूनिटेक और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया।
7. टेप और कॉल रिकॉर्डिंग का भंडाफोड़
नीरा राडिया टेप्स:
कारोबारी लॉबिस्ट नीरा राडिया की फोन रिकॉर्डिंग सार्वजनिक हुई, जिसमें उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन में राजनीतिक और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप का खुलासा किया।
इन टेप्स ने दिखाया कि किस तरह कॉर्पोरेट कंपनियां, पत्रकार, और नौकरशाह इस घोटाले में शामिल थे।
8. राजनीतिक दबाव और इस्तीफे
ए. राजा का इस्तीफा (2010):
भारी दबाव के बाद ए. राजा ने दूरसंचार मंत्री के पद से इस्तीफा दिया।
इस घोटाले के कारण यूपीए सरकार की छवि खराब हो गई, जिससे 2014 के चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।
9. स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द (2012)
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में 2008 में दिए गए सभी 122 स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द कर दिए।
कोर्ट ने कहा कि स्पेक्ट्रम की नीलामी पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए थी।
निष्कर्ष
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का भंडाफोड़ भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत को रेखांकित करता है। यह मामला दिखाता है कि कैसे नागरिकों, मीडिया, और न्यायपालिका ने मिलकर इस घोटाले को उजागर किया। हालांकि 2017 में सभी आरोपियों को अ
दालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, लेकिन यह घोटाला आज भी भारत में भ्रष्टाचार के मामलों का प्रतीक बना हुआ है।
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