"We, or Our Nationhood Defined" की विचारधारा और इसके कारण उत्पन्न विवादों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें पुस्तक के मुख्य बिंदुओं और उनके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करनी होगी। यह पुस्तक उस समय की पृष्ठभूमि में लिखी गई थी जब भारत स्वतंत्रता संग्राम के दौर से गुजर रहा था और देश का सांप्रदायिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण था।
पुस्तक का उद्देश्य और मुख्य विचार
इस पुस्तक का मूल उद्देश्य "भारतीय राष्ट्रवाद" की एक परिभाषा देना था। लेखक (गोलवलकर या किसी अन्य) ने तर्क दिया कि भारत एक "राष्ट्र" तभी बन सकता है जब वह अपनी सांस्कृतिक जड़ों और परंपराओं, विशेष रूप से हिंदू धर्म, को आधार बनाए।
मुख्य विचार
1. भारत = हिंदू राष्ट्र:
भारत का राष्ट्रवाद उसकी हिंदू संस्कृति और परंपराओं में निहित है।
हिंदू धर्म को भारत की एकता और पहचान का आधार बताया गया।
2. अल्पसंख्यकों का स्थान:
भारत में रहने वाले अल्पसंख्यकों (मुख्य रूप से मुस्लिम और ईसाई) को हिंदू संस्कृति में समर्पण करना चाहिए।
पुस्तक ने यह सुझाव दिया कि अल्पसंख्यकों को अपनी अलग पहचान छोड़नी होगी और "राष्ट्रीय मुख्यधारा" (हिंदू परंपराओं) में शामिल होना होगा।
3. राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक शुद्धता:
जर्मनी और इटली के नस्लीय और सांस्कृतिक शुद्धता के विचारों को भारत में लागू करने की वकालत की गई।
जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ कार्रवाई को "राष्ट्रीय एकता बनाए रखने" का एक उदाहरण बताया गया।
4. धर्मनिरपेक्षता की अस्वीकृति:
धर्मनिरपेक्षता को पश्चिमी विचारधारा मानते हुए इसे भारत के लिए अनुपयुक्त बताया गया।
लेखक का तर्क था कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संस्कृति और पहचान को कमजोर करती है।
पुस्तक के कारण विवाद और आलोचना
1. अल्पसंख्यकों को आत्मसात करने का विचार
पुस्तक में अल्पसंख्यकों को "आत्मसात" करने की बात कही गई।
इसका अर्थ था कि मुस्लिम, ईसाई, और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान छोड़कर हिंदू संस्कृति को अपनाना होगा।
आलोचकों ने इसे सांप्रदायिकता और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाला विचार माना।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार) का यह विचार उल्लंघन करता है।
2. जर्मनी और नस्लीय शुद्धता का संदर्भ
पुस्तक में जर्मनी के यहूदियों के खिलाफ उठाए गए कदमों की प्रशंसा की गई और इसे "राष्ट्रीय एकता बनाए रखने" का उदाहरण बताया गया।
इस विचार को नाजी विचारधारा का समर्थन माना गया, जिसने भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर आलोचना और निंदा को जन्म दिया।
आलोचकों ने कहा कि यह विचार भारत के बहुलतावादी समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
3. धर्मनिरपेक्षता का विरोध
पुस्तक में धर्मनिरपेक्षता को खारिज करते हुए इसे भारतीय संस्कृति के लिए हानिकारक बताया गया।
भारतीय संविधान, जो धर्मनिरपेक्षता को मौलिक सिद्धांत मानता है, के साथ यह विचार टकराव में था।
इसने स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं (महात्मा गांधी, नेहरू, आदि) की समावेशी राष्ट्रवाद की दृष्टि के विपरीत विचार प्रस्तुत किया।
4. सांप्रदायिक राजनीति का आधार
पुस्तक ने हिंदू और गैर-हिंदू के बीच एक गहरी रेखा खींची।
यह विचारधारा भारत में सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने का कारण बनी।
आलोचकों का मानना है कि इस पुस्तक ने आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों (जैसे भारतीय जनता पार्टी) को हिंदुत्व के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण का वैचारिक आधार प्रदान किया।
5. राष्ट्रीय आंदोलन से टकराव
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें सभी धर्मों और समुदायों को एक समान माना गया।
"We, or Our Nationhood Defined" ने इस दृष्टिकोण को चुनौती देते हुए "एकधर्मी राष्ट्रवाद" की वकालत की।
यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की व्यापकता और बहुलतावादी दृष्टिकोण के विपरीत था।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
1. आरएसएस और हिंदुत्व का आधार
इस पुस्तक के विचार आरएसएस की प्रारंभिक वैचारिक नींव बने।
आरएसएस ने "हिंदू राष्ट्र" की अवधारणा को अपने सामाजिक और राजनीतिक एजेंडे के केंद्र में रखा।
2. गांधी की हत्या और आरएसएस पर प्रतिबंध
महात्मा गांधी की हत्या (1948) के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
गांधी की हत्या के लिए आरएसएस की विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया गया।
इस पुस्तक को उस समय आरएसएस की सांप्रदायिक मानसिकता के प्रमाण के रूप में देखा गया।
3. समकालीन राजनीति में प्रभाव
पुस्तक के विचार हिंदुत्व-आधारित राजनीति के लिए वैचारिक आधार बने।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और संघ परिवार के अन्य संगठनों ने इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में प्रचारित किया।
आलोचकों का कहना है कि इससे भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा मिला।
संविधान और पुस्तक के विचारों का टकराव
संविधान का दृष्टिकोण:
भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी दृष्टिकोण को अपनाता है।
हर व्यक्ति को अपने धर्म, संस्कृति और परंपराओं का पालन करने की स्वतंत्रता है।
पुस्तक का दृष्टिकोण:
यह पुस्तक "हिंदू राष्ट्र" की अवधारणा को बढ़ावा देती है, जो भारत के संवैधानिक मूल्यों से मेल नहीं खाती।
धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांत के खिलाफ यह पुस्तक राष्ट्रीय एकता को "धार्मिक शुद्धता" से जोड़ती हैं।
निष्कर्ष
"We, or Our Nationhood Defined" ने भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा को लेकर गहरी बहस छेड़ी।
इसके विचार भारतीय समाज के बहुलतावादी और समावेशी दृष्टिकोण के विपरीत थे।
आलोचकों का मानना है कि इस पुस्तक ने सांप्रदायिकता को वैचारिक समर्थन दिया।
इसके बावजूद, यह पुस्तक आरएसएस और हिंदुत्व विचारधारा को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें