रॉबर्ट क्लाइव का जीवन और करियर एक साधारण क्लर्क से ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली अधिकारियों में से एक बनने का एक असाधारण उदाहरण है। उसका यह सफर दृढ़ता, सैन्य कौशल और परिस्थितियों के कुशल उपयोग का परिणाम था।
प्रारंभिक जीवन और क्लर्क के रूप में शुरुआत:
1. जन्म और शिक्षा:
रॉबर्ट क्लाइव का जन्म 29 सितंबर 1725 को इंग्लैंड के श्रॉपशायर में हुआ।
वह एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से था। बचपन में वह पढ़ाई में अच्छा नहीं था और काफी विद्रोही स्वभाव का था।
2. क्लर्क के रूप में नियुक्ति:
1743 में, 18 साल की उम्र में, क्लाइव को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में एक छोटे क्लर्क (राइटर) के रूप में नियुक्त किया गया।
उसे मद्रास (वर्तमान चेन्नई) भेजा गया, जहां कंपनी के प्रशासनिक कार्यों में मदद करनी थी। यह काम उसके लिए काफी उबाऊ था, और वह इससे असंतुष्ट था।
सैन्य करियर की शुरुआत:
1. सैन्य जीवन में प्रवेश:
1746 में, जब फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच भारत में संघर्ष (कार्नाटिक युद्ध) हुआ, तो क्लाइव ने खुद को क्लर्क के काम से हटाकर सैनिक बनने का मौका खोजा।
उसने ब्रिटिश सेना में शामिल होकर युद्ध कौशल सीखा।
2. रणनीतिक क्षमता:
क्लाइव ने 1751 में आर्कोट की घेराबंदी में अपनी असाधारण सैन्य रणनीति का प्रदर्शन किया। 500 सैनिकों के साथ उसने एक किले की रक्षा की और बड़े पैमाने पर फ्रांसीसी समर्थित भारतीय सेना को हराया।
इस विजय ने उसे एक कुशल सैनिक और रणनीतिकार के रूप में स्थापित किया।
क्लाइव का सत्ता में उदय:
1. प्लासी का युद्ध (1757):
बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव के कारण सिराजुद्दौला (बंगाल के नवाब) के साथ संघर्ष हुआ।
क्लाइव ने अपनी चालाकी और मीर जाफर की गद्दारी के माध्यम से सिराजुद्दौला को हराया। यह प्लासी के युद्ध में ब्रिटिश विजय का निर्णायक कारण बना।
इस विजय के बाद, क्लाइव को बंगाल में दीवानी (राजस्व संग्रह) अधिकार मिला और कंपनी को अपार धन और सत्ता प्राप्त हुई।
2. बंगाल का गवर्नर:
1758 में, क्लाइव को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया। उसने प्रशासन में कई बदलाव किए और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भारत में व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया।
इंग्लैंड वापसी और पुनः भारत आगमन:
1. इंग्लैंड में सफलता:
क्लाइव 1760 में इंग्लैंड लौट गया और उसने अपनी सफलताओं के आधार पर धन, सम्मान और राजनीतिक समर्थन अर्जित किया। उसे "बारोन क्लाइव" की उपाधि दी गई।
हालांकि, कंपनी के भारत में बढ़ते भ्रष्टाचार और प्रशासनिक समस्याओं के कारण उसे 1765 में दोबारा भारत बुलाया गया।
2. दीवानी अधिकार और वायसराय के रूप में भूमिका:
1765 में, उसने मुगल सम्राट शाह आलम II से बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार कंपनी के लिए हासिल किए। इससे ब्रिटिश कंपनी भारत में सर्वोच्च आर्थिक शक्ति बन गई।
क्लाइव को भारत में कंपनी का सर्वोच्च प्रतिनिधि (आधुनिक संदर्भ में वायसराय जैसा पद) माना जाने लगा।
क्लाइव का पतन और अंतिम समय:
रॉबर्ट क्लाइव, जिसे "क्लाइव ऑफ इंडिया" के नाम से जाना जाता है, 18वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक प्रमुख अधिकारी था। प्लासी के युद्ध (1757) के बाद उसने बंगाल में अपना प्रभाव स्थापित किया और इस क्षेत्र से भारी मात्रा में धन ब्रिटेन भेजा।
रॉबर्ट क्लाइव द्वारा लूट का विवरण:
1. प्लासी के युद्ध के बाद की लूट (1757):
प्लासी की विजय के बाद, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के खजाने को कब्जे में लिया गया। इसे तत्कालीन समय में लगभग 2 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था।
इस राशि में सोना, चांदी, गहने और अन्य कीमती वस्तुएं शामिल थीं।
क्लाइव ने व्यक्तिगत रूप से लगभग 2 लाख रुपये नकद और 28 लाख रुपये के गहने लिए।
2. दीवानी अधिकार (1765):
1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी (राजस्व संग्रह) अधिकार मिल गए। इसने ब्रिटेन को भारत से अपार धन ले जाने का रास्ता खोल दिया।
क्लाइव ने खुद को और कंपनी को लाभान्वित करने के लिए इस अधिकार का दुरुपयोग किया।
आज के बाजार मूल्य में गणना:
उस समय के 2 करोड़ रुपये को अगर आज की मुद्रा और सोने-चांदी के मूल्य के अनुसार देखा जाए तो यह राशि खरबों रुपये में होगी।
इसके अलावा सोने चांदी के जेवर मूर्तियां और सोने चांदी के सिक्के लूट और उपहार के रूप में अकूत सम्पती प्राप्त की ।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
रॉबर्ट क्लाइव ने इस धन का उपयोग न केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को मजबूत करने के लिए किया, बल्कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने m बढ़ावा दिया।
यह धन भारत में भयंकर गरीबी और आर्थिक शोषण का कारण बना, क्योंकि यहां से धन निकालने से स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
1. आलोचनाएं और भ्रष्टाचार के आरोप:
क्लाइव पर भारत में अत्यधिक लूटपाट और भ्रष्टाचार के आरोप लगे। ब्रिटेन में उसकी आलोचना बढ़ने लगी।
उसने खुद को निर्दोष साबित किया, लेकिन यह विवाद उसकी छवि को कमजोर कर गया।
क्लाइव पर विवाद:
1. लूट और भ्रष्टाचार:
बंगाल पर नियंत्रण के बाद, क्लाइव ने भारी मात्रा में धन और संपत्ति अर्जित की।
उसकी नीतियों के कारण बंगाल में भूखमरी और आर्थिक तबाही हुई।
2. अन्यायपूर्ण शोषण:
बंगाल के किसानों और व्यापारियों से कर वसूली और शोषण ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया।
3. आत्महत्या:
इंग्लैंड लौटने के बाद क्लाइव पर भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों के आरोप लगे।
मानसिक तनाव और आलोचना के कारण उसने आत्महत्या कर ली।
क्लाइव की विरासत:
क्लाइव को ब्रिटिश साम्राज्य का हीरो माना गया, लेकिन भारतीय दृष्टिकोण से उसे एक शोषक और लुटेरा कहा जाता है।
उसकी नीतियों ने भारत में औपनिवेशिक शासन की नींव रखी, लेकिन इसका खामियाजा भारतीय समाज ने लंबे समय तक भुगता।
रॉबर्ट क्लाइव का व्यक्तित्व इस बात का प्रतीक है कि किस तरह औपनिवेशिक शासक अपने स्वार्थ के लिए एक देश की संपत्ति और संस्कृति को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
2. मृत्यु:
आर्थिक और मानसिक दबावों के कारण रॉबर्ट क्लाइव ने 22 नवंबर 1774 को आत्महत्या कर ली।
निष्कर्ष:
रॉबर्ट क्लाइव का सफर साधारण क्लर्क से गवर्नर और फिर वायसराय जैसी शक्ति तक पहुंचने का था। उसकी उपलब्धियां भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण थीं, लेकिन उसका लालच और भारत से धन की लूट ने उसे एक विवादित व्यक्तित्व बना दिया।
अगर रॉबर्ट क्लाइव द्वारा भारत से लूटा गया धन आज के बाजार मूल्य में देखा जाए तो यह कई लाख करोड़ रुपये के बराबर होगा। यह लूट भारत की आर्थिक संपदा के क्षरण और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विस्तार का प्रमुख कारण थी।
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