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कांग्रेसी शासन काल का बोफोर्स घोटाला (1987) कैसे हुआ था भंडाफोड़

बोफोर्स घोटाला भारत के सबसे चर्चित और विवादास्पद रक्षा घोटालों में से एक है, जिसने 1980 के दशक में राजीव गांधी सरकार की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। यह मामला स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स से तोपों की खरीद से जुड़ा था।


घोटाले की पृष्ठभूमि


1. 1980 के दशक में भारत की सेना को आधुनिक हथियारों की जरूरत थी।


2. भारतीय सेना ने 155 मिमी हॉवित्जर तोपों की खरीद का निर्णय लिया।


3. 1986 में, भारत सरकार ने एबी बोफोर्स से लगभग 410 हॉवित्जर तोपों की खरीद के लिए 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का समझौता किया।


4. यह सौदा राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान हुआ।


घोटाला कैसे सामने आया?


1. स्वीडिश रेडियो का खुलासा (1987):

अप्रैल 1987 में स्वीडन के रेडियो ने रिपोर्ट दी कि एबी बोफोर्स ने यह सौदा हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों और नेताओं को भारी रिश्वत दी।


2. रिश्वत का आरोप:


आरोप था कि एबी बोफोर्स ने भारतीय अधिकारियों, नेताओं और बिचौलियों को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी।

इस घोटाले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम भी उछला, क्योंकि कहा गया कि वे इस मामले की जानकारी होने के बावजूद इसे रोकने में असफल रहे।


3. प्रमुख नाम:


ओत्तावियो क्वात्रोची, जो राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी के करीबी माने जाते थे, पर घोटाले में मुख्य बिचौलिये की भूमिका निभाने का आरोप लगा।

क्वात्रोची को इस सौदे से बड़ा लाभ मिलने की बात सामने आई।


जांच और राजनीतिक प्रभाव


1. जांच की शुरुआत:


भारत में इस मामले की जांच सीबीआई द्वारा शुरू की गई।

स्वीडिश अधिकारियों ने भी इस मामले की जांच की।


2. राजनीतिक भूचाल:


इस घोटाले ने राजीव गांधी सरकार को गहरा झटका दिया।

1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा, और वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने।


3. कानूनी कार्यवाही:


वर्षों तक यह मामला कोर्ट और जांच एजेंसियों के बीच उलझा रहा।

ओत्तावियो क्वात्रोची भारत से फरार हो गया और उसे वापस लाने के प्रयास असफल रहे।


4. 2011 में मामला बंद:


करीब 25 वर्षों की लंबी जांच और सुनवाई के बाद, 2011 में अदालत ने सबूतों के अभाव में इस मामले को बंद कर दिया।

बोफोर्स घोटाले का प्रभाव


1. कांग्रेस की छवि पर धक्का:


राजीव गांधी की "ईमानदार और युवा नेता" की छवि को इस घोटाले ने गहरा आघात पहुंचाया।

कांग्रेस पार्टी को लंबे समय तक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्षी दलों के आरोपों का सामना करना पड़ा।


2. भारतीय राजनीति में पारदर्शिता का सवाल:


यह घोटाला भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को तेज करने वाला बन गया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता में आक्रोश बढ़ा।


3. दूरगामी प्रभाव:


यह घोटाला भारतीय राजनीति का एक प्रतीक बन गया, जो आज भी भ्रष्टाचार के मामलों में संदर्भित किया जाता है।


निष्कर्ष


बोफोर्स घोटाला भारत में भ्रष्टाचार और राजनीतिक नैतिकता के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के लिए एक चेताव

नी थी। हालांकि, यह मामला तकनीकी रूप से बंद हो चुका है, लेकिन इसका प्रभाव भारतीय राजनीति पर आज भी महसूस किया जाता है।


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