"We, or Our Nationhood Defined" पुस्तक 1939 में प्रकाशित हुई थी और इसे आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) के नाम से जोड़ा जाता है। यह पुस्तक भारतीय राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक पहचान और हिंदू विचारधारा पर केंद्रित है। हालांकि, इस पुस्तक को लेकर काफी विवाद और आलोचना हुई है, विशेष रूप से इसमें व्यक्त विचारों को लेकर।
पुस्तक की मुख्य बातें
1. राष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्र:
पुस्तक में कहा गया है कि भारत का असली राष्ट्रवाद हिंदू संस्कृति और परंपराओं में निहित है।
लेखक ने भारत को एक "हिंदू राष्ट्र" के रूप में परिभाषित किया है और हिंदू संस्कृति को इस राष्ट्र की आत्मा बताया है।
2. अल्पसंख्यकों पर विचार:
पुस्तक में लिखा गया है कि भारत में रहने वाले गैर-हिंदुओं (जैसे मुसलमान और ईसाई) को "भारतीय संस्कृति" और "हिंदू जीवन शैली" को अपनाना होगा।
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक हिंदू समाज में समर्पण और आत्मसात करना चाहिए।
3. प्रेरणा स्रोत:
पुस्तक में जर्मनी और इटली के उन विचारों का संदर्भ दिया गया है, जो नस्लीय और सांस्कृतिक शुद्धता को बढ़ावा देते थे।
जर्मनी में यहूदियों के साथ हुई घटनाओं का उल्लेख करते हुए, लेखक ने इसे "राष्ट्र की एकता" बनाए रखने का उदाहरण बताया। इस विचारधारा को अत्यधिक आलोचना का सामना करना पड़ा है।
4. भारत की राष्ट्रीय पहचान:
लेखक का मानना है कि भारत का अस्तित्व हिंदू धर्म और संस्कृति से जुड़ा हुआ है।
वे तर्क देते हैं कि केवल हिंदू संस्कृति ही भारत को एक सशक्त और संगठित राष्ट्र बना सकती है।
5. धर्मनिरपेक्षता की अस्वीकृति:
पुस्तक में धर्मनिरपेक्षता को भारतीय समाज के लिए अनुपयुक्त बताया गया है।
लेखक ने इस विचार को विदेशी और भारत की प्राचीन परंपराओं के खिलाफ बताया।
पुस्तक पर आलोचना
1. नस्लीय समानता की आलोचना:
पुस्तक में जर्मनी की विचारधारा का समर्थन करने वाले हिस्सों को विभाजनकारी और असंवेदनशील माना गया है।
यह आरोप लगाया गया कि यह विचारधारा भारतीय समाज की बहुलता और विविधता के लिए हानिकारक है।
2. अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर सवाल:
आलोचकों का कहना है कि पुस्तक में अल्पसंख्यकों को समान नागरिक अधिकार देने के बजाय उन्हें बहुसंख्यक संस्कृति में आत्मसात होने के लिए मजबूर करने का समर्थन किया गया है।
3. लोकतांत्रिक मूल्यों का अभाव:
आधुनिक लोकतंत्र और बहुलवाद की अवधारणाओं से पुस्तक के विचार मेल नहीं खाते।
पुस्तक का महत्व
यह पुस्तक आरएसएस के प्रारंभिक वैचारिक दृष्टिकोण को समझने का माध्यम है।
इसके विचारों ने भारत के राष्ट्रवाद और राजनीति में गहरे विवाद खड़े किए।
हालांकि, बाद में स्वयं आरएसएस और गोलवलकर ने भी इस पुस्तक के विचारों से दूरी बना ली थी।
गोलवलकर और विवाद
गोलवलकर ने अपने जीवनकाल में कई बार इस पुस्तक का सार्वजनिक बचाव नहीं किया। उन्होंने अपनी अन्य रचनाओं, जैसे "बंच ऑफ थॉट्स", में अपने विचारों को अधिक स्पष्ट और व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया।
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