चीन ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने की योजना पर काम कर रहा है। यह परियोजना तिब्बत के मेडोग काउंटी में स्थित है और इसे "यारलुंग त्सांगपो ग्रैंड हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट" के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख बातें:
1. बांध की क्षमता – इस बांध की पावर जनरेशन क्षमता 60 गीगावाट तक हो सकती है, जो चीन के थ्री गॉर्जेस डैम (22.5 गीगावाट) से भी तीन गुना अधिक होगी।
2. रणनीतिक महत्व – यह चीन के लिए ऊर्जा उत्पादन का एक बड़ा स्रोत होगा और देश की ग्रीन एनर्जी नीतियों को मजबूत करेगा।
3. भारत की चिंताएँ – ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश के लिए एक प्रमुख जलस्रोत है, इसलिए इस विशाल बांध के कारण निचले इलाकों में जल प्रवाह और पर्यावरणीय संतुलन पर असर पड़ सकता है। भारत को आशंका है कि इससे नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे असम और अरुणाचल प्रदेश में जल संकट उत्पन्न हो सकता है।
4. पर्यावरणीय प्रभाव – इस परियोजना से तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के इकोसिस्टम पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।
चीन ने इस परियोजना को 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) में शामिल किया है, और यह संभवतः 2035 तक पूरी हो सकती है। भारत ने इस पर चिंता व्यक्त की है और अपने स्तर पर ब्रह्मपुत्र पर जल संसाधनों के संरक्षण के उपायों पर काम कर रहा है।
चीन की ब्रह्मपुत्र बांध परियोजना: भारत के लिए घातक क्यों?
चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग त्सांगपो) पर बनाए जा रहे "मेगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट" से भारत को गंभीर जल, पर्यावरणीय और सामरिक खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यह परियोजना चीन के "जल संसाधनों के नियंत्रण" (Water Hegemony) की रणनीति का हिस्सा है, जिससे भारत और बांग्लादेश प्रभावित हो सकते हैं।
1. जल संसाधनों पर खतरा (Water Scarcity Threat)
चीन यदि ब्रह्मपुत्र का पानी रोककर स्टोर करता है या डायवर्ट करता है, तो इससे भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम और पूर्वोत्तर राज्यों में जल संकट पैदा हो सकता है।
सूखे के दौरान चीन पानी रोक सकता है, जिससे कृषि, पेयजल और जलविद्युत उत्पादन प्रभावित होगा।
इससे ब्रह्मपुत्र का प्राकृतिक प्रवाह असंतुलित हो सकता है, जिससे भारत की नदियाँ और भूजल स्रोत भी प्रभावित होंगे।
2. बाढ़ और जल आपदा का खतरा (Flood & Disaster Risk)
मानसून के दौरान अचानक पानी छोड़ने से असम और अरुणाचल प्रदेश में भीषण बाढ़ आ सकती है।
चीन पहले भी 2000 और 2017 में बिना चेतावनी के ब्रह्मपुत्र में पानी छोड़कर असम और अरुणाचल में बाढ़ ला चुका है, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे।
अगर बांध टूटता है या चीन जानबूझकर अधिक पानी छोड़ता है, तो असम और बांग्लादेश में तबाही मच सकती है।
3. कृषि और आर्थिक नुकसान (Agricultural & Economic Impact)
ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत की कृषि बहुत हद तक निर्भर है। यदि चीन जल प्रवाह को बदलता है, तो असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में धान, चाय और अन्य फसलों को भारी नुकसान होगा।
मछली पालन, पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, जिससे हजारों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
4. पर्यावरणीय असंतुलन (Environmental Disruptions)
चीन का यह बांध हिमालयी इकोसिस्टम के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, जिससे अरुणाचल प्रदेश और असम में नदी पारिस्थितिकी (River Ecology) बदल जाएगी।
नदी के जल प्रवाह में बदलाव से डॉल्फिन, मछलियों और अन्य जलीय जीवों की प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
भूस्खलन और भूकंप का खतरा: तिब्बत का इलाका भूकंप प्रभावित क्षेत्र (Seismic Zone) में आता है। यदि वहां इतना बड़ा बांध बनाया गया, तो यह भूकंप और भूस्खलन की संभावना को बढ़ा सकता है, जिससे भारत में भी असर पड़ेगा।
5. सामरिक और भू-राजनीतिक खतरा (Strategic & Geopolitical Threat)
चीन पहले ही अरुणाचल प्रदेश को "दक्षिण तिब्बत" कहकर अपना हिस्सा बताता है। ब्रह्मपुत्र पर यह परियोजना भारत पर दबाव बनाने की एक रणनीतिक चाल हो सकती है।
चीन इस जल संसाधन को "जल हथियार" (Water Weapon) के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
यदि भारत और चीन के बीच कोई युद्ध या तनाव बढ़ता है, तो चीन ब्रह्मपुत्र का पानी रोककर भारत को जल संकट में डाल सकता है।
6. भारत के लिए सैन्य चुनौती (Military & Defense Challenge)
चीन की इस परियोजना से तिब्बत में सैन्य बुनियादी ढांचा (Military Infrastructure) मजबूत होगा, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा बढ़ सकता है।
चीन इस क्षेत्र में सड़क, पुल और अन्य सैन्य सुविधाओं का निर्माण कर सकता है, जिससे अरुणाचल प्रदेश पर दबाव बढ़ेगा।
डोकलाम और गलवान जैसी स्थिति ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में भी पैदा हो सकती है, जिससे भारतीय सेना को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
7. बांग्लादेश के लिए संकट (Threat to Bangladesh)
ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश के लिए जीवनरेखा है। चीन के बांध से जल प्रवाह प्रभावित होने से वहां भारी जल संकट या बाढ़ आ सकती है।
यदि भारत और बांग्लादेश को कम पानी मिलता है, तो इससे दोनों देशों के बीच भी राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है।
निष्कर्ष: भारत के लिए घातक क्यों?
चीन की यह परियोजना सिर्फ एक बांध नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार है, जिससे भारत को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:
जल संकट: सूखा या जल प्रवाह में कमी।
बाढ़ का खतरा: अचानक पानी छोड़ने से असम और अरुणाचल में आपदा।
कृषि और आर्थिक प्रभाव: असम और पूर्वोत्तर की खेती और मछली पालन को नुकसान।
पर्यावरणीय असंतुलन: पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर खतरा।
सामरिक दबाव: अरुणाचल प्रदेश में चीन की सैन्य रणनीति को मजबूती।
बांग्लादेश में असर: भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर दबाव।
भारत की तरफ से क्या किया जा सकता है?
भारत को इस खतरे से निपटने के लिए:
1. ब्रह्मपुत्र पर अपने जलविद्युत और जल भंडारण परियोजनाएँ तेज करनी होंगी।
2. बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाना होगा।
3. सैटेलाइट और निगरानी तकनीकों से चीन की जल रणनीति पर लगातार नजर रखनी होगी।
4. अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर में सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा।
*ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की चुनौती के जवाब में भारत की रणनीति क्या है।
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) पर विशाल बांध बनाने की योजना भारत के लिए एक बड़ी जल और रणनीतिक चुनौती पेश करती है। भारत की रणनीति कूटनीतिक, तकनीकी, पर्यावरणीय और सैन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाएगी।
1. जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए भारत की रणनीति
(i) ब्रह्मपुत्र पर बड़े बांधों का निर्माण
भारत अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी (ब्रह्मपुत्र की ऊपरी धारा) पर कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू कर रहा है।
10 GW की एक बड़ी जलविद्युत परियोजना विकसित करने की योजना है, ताकि चीन द्वारा जल प्रवाह में किसी भी संभावित बदलाव का जवाब दिया जा सके।
जल भंडारण संरचनाएँ बनाई जाएँगी ताकि पानी की आपूर्ति को नियंत्रित रखा जा सके और बाढ़ को रोका जा सके।
(ii) बहुपक्षीय जल कूटनीति (Water Diplomacy)
बांग्लादेश के साथ जल संधि: भारत यह सुनिश्चित करेगा कि चीन की गतिविधियों से बांग्लादेश को कोई नुकसान न हो और दोनों देश मिलकर जल प्रबंधन की योजना बना सकें।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन पर दबाव: भारत संयुक्त राष्ट्र, BRICS और अन्य मंचों पर चीन के "ट्रांसबाउंडरी वाटर मैनेजमेंट" के खिलाफ आवाज उठा सकता है।
QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का सहयोग: इस समूह के माध्यम से भारत चीन की जल-रणनीति पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है।
(iii) जल निगरानी और तकनीकी उपाय
भारत ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह की निगरानी के लिए एडवांस सेटेलाइट और सेंसर तकनीक का इस्तेमाल करेगा।
चीन ने पहले भी मानसून में अचानक पानी छोड़कर असम और बांग्लादेश में बाढ़ पैदा की थी, इसलिए रियल-टाइम डेटा सिस्टम विकसित किया जाएगा।
नदी इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट: भारत ब्रह्मपुत्र के अतिरिक्त पानी को अन्य नदियों से जोड़ने की योजना बना सकता है, ताकि जल संकट से निपटा जा सके।
2. पर्यावरणीय और आर्थिक रणनीति
(i) जलविद्युत और हरित ऊर्जा परियोजनाएँ
भारत जलविद्युत संयंत्रों को सौर और पवन ऊर्जा से जोड़ सकता है, जिससे ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
इससे पूर्वोत्तर राज्यों में रोज़गार और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
(ii) बाढ़ और सूखे से निपटने की योजना
भारत असम और अरुणाचल में फ्लड मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करेगा, जिससे चीन के जल नीति प्रभावों को कम किया जा सके।
चीन यदि सूखा या बाढ़ उत्पन्न करने की रणनीति अपनाता है, तो भारत अपने जलाशयों और जल संरक्षण परियोजनाओं से जवाब देगा।
3. सैन्य और भू-राजनीतिक रणनीति
(i) अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में सैन्य बुनियादी ढाँचा मज़बूत करना
चीन ब्रह्मपुत्र का पानी अपने उपयोग के लिए डायवर्ट कर सकता है, जो भारत के लिए सुरक्षा चुनौती बन सकता है।
भारत अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर में सैन्य आधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत कर रहा है ताकि चीन के किसी भी जल-आधारित दबाव का मुकाबला किया जा सके।
(ii) चीन को जवाब देने के लिए रणनीतिक गठजोड़
भारत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के साथ मिलकर चीन की जल-नीति पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करेगा।
ASEAN देशों के साथ सहयोग कर सकता है, क्योंकि चीन मेकोंग नदी पर भी बांध बनाकर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को प्रभावित कर रहा है।
निष्कर्ष: भारत की व्यापक रणनीति
चीन के ब्रह्मपुत्र पर जल नियंत्रण प्रयासों के खिलाफ भारत की रणनीति चार स्तंभों पर आधारित होगी:
1. बड़े बांध और जल भंडारण परियोजनाएँ – ब्रह्मपुत्र पर अपने जल संसाधनों की रक्षा के लिए। यदि चीन अरुणाचल और असम में तबाही लाने के लिए बांध का जल छोड़ देता है ,तो हमारे क्षेत्र के बांध उस प्रवाह को रोक सके ।
2. बांग्लादेश और वैश्विक सहयोग – चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए।
3. तकनीकी निगरानी और जल प्रबंधन – जल प्रवाह पर नजर रखने और आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए।
4. सैन्य और भू-राजनीतिक रणनीति – पूर्वोत्तर में सुरक्षा को मजबूत करने और चीन की रणनीति का जवाब देने के लिए।
भारत को इस मुद्दे पर आक्रामक और दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी ताकि वह चीन के "जल हथियार" (Water Weapon) के प्रभाव से बच सके और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें