सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सामरिक महत्व

 अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों का सामरिक महत्व


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के पूर्वी समुद्री तट पर स्थित 572 द्वीपों का एक समूह है। यह बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के बीच स्थित है। इन द्वीपों का सामरिक (strategic) महत्व निम्नलिखित कारणों से अत्यधिक है:


1. भौगोलिक स्थिति और सामरिक स्थान


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह मालक्का जलडमरूमध्य के निकट स्थित हैं, जो वैश्विक समुद्री व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।


मालक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से दुनिया के लगभग 40% समुद्री व्यापार का संचालन होता है। यह चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों के लिए ऊर्जा आपूर्ति का मुख्य मार्ग है।


इन द्वीपों पर भारत की मजबूत उपस्थिति चीन के बढ़ते समुद्री प्रभुत्व को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है।



2. सुरक्षा और रक्षा


ये द्वीप भारत की पूर्वी नौसेना कमान और सामरिक त्रिस्तरीय कमान (ANC) के मुख्यालय के रूप में कार्य करते हैं।


भारत इन द्वीपों का उपयोग दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षा और निगरानी के लिए करता है।


ये द्वीप चीन की String of Pearls रणनीति का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण हैं।



3. समुद्री निगरानी और नियंत्रण


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह समुद्री निगरानी और सामरिक चौकसी के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं।


यहाँ से भारत अपने समुद्री क्षेत्र में संयुक्त नौसेना गश्ती (Naval Patrol) और अन्य निगरानी मिशनों को प्रभावी ढंग से संचालित करता है।



4. बढ़ते चीनी प्रभाव पर नियंत्रण


चीन के बढ़ते समुद्री प्रभुत्व को रोकने के लिए ये द्वीप अत्यंत उपयोगी हैं।


हिंद महासागर में भारत-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने में इनका महत्व और बढ़ जाता है।



5. व्यापार और वाणिज्यिक महत्व


इन द्वीपों के माध्यम से भारत समुद्री व्यापार मार्गों को सुरक्षित रख सकता है।


यह क्षेत्र "सागर" (SAGAR - Security and Growth for All in the Region) दृष्टिकोण के तहत भारत के समुद्री व्यापार और रणनीतिक हितों को संरक्षित करता है।



6. प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण


द्वीप समूह के आसपास के समुद्री क्षेत्रों में खनिज संसाधन, मछली पालन, और अन्य समुद्री संपदाएँ प्रचुर मात्रा में हैं।


इन संसाधनों पर नियंत्रण आर्थिक और सामरिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।



7. ट्राई-सर्विस थिएटर कमान


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत की पहली त्रिस्तरीय (थल, जल और वायु सेना) सामरिक कमान का मुख्यालय है।


यहाँ से भारत समुद्री रक्षा को मजबूती से संचालित कर सकता है।



8. इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक भूमिका


भारत इन द्वीपों का उपयोग अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ सामरिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए कर सकता है।


क्वाड (QUAD) जैसे संगठनों के साथ सहयोग में यह क्षेत्र अत्यंत उपयोगी है।



9. आपदा प्रबंधन और राहत कार्य


यह क्षेत्र आपदा प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण हब के रूप में कार्य करता है।


2004 की सुनामी के बाद इन द्वीपों ने राहत और बचाव अभियानों में बड़ी भूमिका निभाई थी।



निष्कर्ष

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये द्वीप हिंद महासागर में भारत की मजबूत उपस्थिति का प्रतीक हैं और वैश्विक समुद्री व्यापार, सुरक्षा, और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए बेहद आवश्यक हैं। इनके सही उपयोग से भारत अपनी समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ कर सकता 

है और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकता है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोंकनस्थ ब्राह्मणों का उत्कर्ष एवं प्रभाव चित्तपावन ब्राह्मणों का प्रदुभाव कैसे हुआ

कोंकनस्थ ब्राह्मण (चितपावन ब्राह्मण) महाराष्ट्र और गोवा-कोंकण क्षेत्र के प्रमुख ब्राह्मण समुदायों में से एक हैं। उनके उत्कर्ष और इस क्षेत्र पर प्रभाव का इतिहास सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संदर्भों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 1. कोंकनस्थ ब्राह्मणों का उत्कर्ष उत्पत्ति और इतिहास: कोंकनस्थ ब्राह्मणों को चितपावन ब्राह्मण भी कहा जाता है। उनकी उत्पत्ति और इतिहास को लेकर कई धारणाएँ हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वे 13वीं-14वीं शताब्दी के दौरान महाराष्ट्र और कोंकण के तटवर्ती क्षेत्रों में बसे। मराठा शासन में भूमिका: शिवाजी महाराज और उनके पश्चात मराठा साम्राज्य के समय कोंकणस्थ ब्राह्मणों ने प्रशासनिक और धार्मिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पेशवा शासनकाल (1713-1818) के दौरान कोंकणास्थ ब्राह्मणों का प्रभाव चरम पर था। पेशवा काल: बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम और नाना साहेब जैसे प्रमुख पेशवा कोंकनस्थ ब्राह्मण थे। इनके शासनकाल में पुणे और उसके आस-पास कोंकणस्थ ब्राह्मणों ने शिक्षा, संस्कृति और प्रशासन में नेतृत्व प्रदान किया। शिक्षा और नवजागरण: ब्रिटिश काल में कोंकनस्थ ब्रा...

भारत में Gen Z की जॉब और बिज़नेस मानसिकता: एक नया दृष्टिकोण

Gen Z, यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी, पारंपरिक नौकरी और व्यवसाय के पुराने ढर्रे को तोड़ते हुए नई संभावनाओं और डिजिटल अवसरों की ओर बढ़ रही है। यह पीढ़ी सिर्फ एक स्थिर जॉब तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि रिमोट वर्क, फ्रीलांसिंग, स्टार्टअप्स और मल्टीपल इनकम सोर्स को अपनाकर स्वतंत्र और लचीला करियर चाहती है। आज Gen Z के लिए कंफर्टेबल और फिक्स्ड जॉब से ज्यादा स्किल-बेस्ड करियर, डिजिटल एंटरप्रेन्योरशिप और क्रिएटिव इंडस्ट्रीज़ महत्वपूर्ण हो गई हैं। यह पीढ़ी टेक्नोलॉजी-संचालित है और सोशल मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग, स्टॉक ट्रेडिंग, गेमिंग, और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग जैसे अनोखे करियर विकल्पों को भी अपना रही है। इसके अलावा, स्टार्टअप संस्कृति का प्रभाव भी बढ़ रहा है, जहां Gen Z ई-कॉमर्स, क्लाउड किचन, कंटेंट क्रिएशन, और सस्टेनेबल ब्रांड्स जैसे क्षेत्रों में अपना बिज़नेस शुरू कर रही है। वे सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि अपने जुनून (Passion) को फॉलो करने और कुछ नया बनाने की चाहत रखते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि भारत में Gen Z किस तरह से नौकरी और व्यवसाय को देखती है, कौन-से करियर ...

"Water as a Weapon: कैसे पानी को युद्ध में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है?"

चीन ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने की योजना पर काम कर रहा है। यह परियोजना तिब्बत के मेडोग काउंटी में स्थित है और इसे "यारलुंग त्सांगपो ग्रैंड हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट" के नाम से जाना जाता है। प्रमुख बातें: 1. बांध की क्षमता – इस बांध की पावर जनरेशन क्षमता 60 गीगावाट तक हो सकती है, जो चीन के थ्री गॉर्जेस डैम (22.5 गीगावाट) से भी तीन गुना अधिक होगी। 2. रणनीतिक महत्व – यह चीन के लिए ऊर्जा उत्पादन का एक बड़ा स्रोत होगा और देश की ग्रीन एनर्जी नीतियों को मजबूत करेगा। 3. भारत की चिंताएँ – ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश के लिए एक प्रमुख जलस्रोत है, इसलिए इस विशाल बांध के कारण निचले इलाकों में जल प्रवाह और पर्यावरणीय संतुलन पर असर पड़ सकता है। भारत को आशंका है कि इससे नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे असम और अरुणाचल प्रदेश में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। 4. पर्यावरणीय प्रभाव – इस परियोजना से तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के इकोसिस्टम पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है। चीन ने इस परियोजना क...