शिलाहार वंश का प्रभाव और गोवा में उनका प्रशासन
शिलाहार वंश ने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक गोवा और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर शासन किया। यह वंश चालुक्य साम्राज्य के अधीनस्थ के रूप में शुरू हुआ, लेकिन बाद में स्वतंत्र हो गया। शिलाहारों ने गोवा के सामाजिक, धार्मिक, और प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।
गोवा में शिलाहार वंश का उदय
स्थापना:
शिलाहार वंश मूल रूप से तीन भागों में विभाजित था:
1. उत्तरी शिलाहार (कोंकण और महाराष्ट्र का उत्तरी भाग)
2. दक्षिणी शिलाहार (कोल्हापुर)
3. पश्चिमी तटीय शिलाहार (गोवा और दक्षिण कोंकण)
गोवा के शिलाहार शासक 8वीं शताब्दी में चालुक्य साम्राज्य के अधीनस्थ के रूप में उभरे।
उन्होंने 10वीं शताब्दी के बाद स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू किया।
शिलाहार वंश का गोवा पर प्रभाव
1. प्रशासनिक व्यवस्था
शिलाहार शासकों ने गोवा में एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रणाली लागू की।
स्थानीय प्रशासन में "महाजन" या गाँव परिषदों का महत्वपूर्ण योगदान था।
भूमि राजस्व प्रणाली को संगठित किया गया।
प्रशासनिक अधिकारियों को विभिन्न क्षेत्रों की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया।
2. धार्मिक योगदान
शिलाहार शासक शैव धर्म के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने जैन धर्म और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया।
मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन दिया गया।
शिलाहारों के शासनकाल में गोवा में शैव मंदिरों का निर्माण हुआ, जो उनकी धार्मिक निष्ठा को दर्शाते हैं।
3. व्यापार और वाणिज्य
शिलाहारों के शासनकाल में गोवा एक प्रमुख समुद्री व्यापारिक केंद्र बना।
अरब और फारसी व्यापारियों के साथ गोवा का संबंध बढ़ा।
मसालों, समुद्री उत्पादों और अन्य वस्तुओं का निर्यात किया जाता था।
4. स्थापत्य और कला
शिलाहारों ने स्थापत्य कला को बढ़ावा दिया।
पत्थर के मंदिर, जलाशय, और मूर्तिकला उनके शासनकाल की विशेषताएँ थीं।
गोवा में कुछ मंदिर और अन्य संरचनाएँ इस काल की स्थापत्य शैली को दर्शाती हैं।
5. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
शिलाहार शासकों ने गोवा की सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दिया।
संस्कृत और प्राकृत साहित्य को संरक्षण मिला।
गोवा की कला और परंपराएँ शिलाहार काल में विकसित हुईं।
प्रमुख शिलाहार शासक और उनकी उपलब्धियाँ
1. सिंहणदेव:
गोवा क्षेत्र में शिलाहार शक्ति को सुदृढ़ किया।
धार्मिक और स्थापत्य गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।
2. मल्लिकार्जुन:
व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया।
मंदिर निर्माण में योगदान दिया।
शिलाहार वंश का पतन
12वीं शताब्दी में शिलाहार वंश कमजोर पड़ने लगा।
चालुक्य और होयसल साम्राज्य ने शिलाहारों के क्षेत्र पर आक्रमण किया।
अंततः शिलाहार वंश का पतन हुआ और गोवा कदंब वंश के नियंत्रण में आ गया।
शिलाहार वंश की विरासत
1. धार्मिक स्थलों का संरक्षण:
शिलाहारों के शासनकाल में बनाए गए मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल गोवा की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
2. स्थापत्य कला:
शिलाहार शैली की मूर्तियाँ और मंदिर गोवा की वास्तुकला परंपरा को समृद्ध बनाते हैं।
3. प्रशासनिक प्रणाली:
"महाजन" प्रणाली, जो गोवा के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रभावी थी, शिलाहार शासनकाल में मजबूत हुई।
4. सामुद्रिक व्यापार:
शिलाहारों ने गोवा को एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में विकसित किया, जो मध्यकालीन भारत के समुद्री व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र बना।
निष्कर्ष
शिलाहार वंश का गोवा के राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने गोवा को एक संगठित
प्रशासनिक इकाई, धार्मिक केंद्र और व्यापारिक हब के रूप में स्थापित किया। उनकी विरासत गोवा की सांस्कृतिक परंपराओं और स्थापत्य कला में आज भी झलकती है।
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