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मौर्य और गुप्त साम्राज्य के प्रशासनिक तंत्र का तुलनात्मक अध्ययन

 

मौर्य और गुप्त साम्राज्य भारत के प्राचीन इतिहास के दो महत्वपूर्ण युग हैं। इन दोनों साम्राज्यों का प्रशासनिक ढांचा प्रभावशाली और संगठित था, लेकिन इन दोनों के बीच कुछ अंतर और समानताएं भी देखी जा सकती हैं।


1. केंद्रीय प्रशासन


मौर्य साम्राज्य:


मौर्य शासन में केंद्रीयकृत प्रशासन था।


राजा के पास सर्वोच्च सत्ता थी और वह शासन का मुख्य केंद्र था।


चाणक्य का अर्थशास्त्र प्रशासन की नीति को निर्धारित करता था।


साम्राज्य का विभाजन कई प्रांतों में था, जिन्हें महामात्रा और राजुक जैसे अधिकारी चलाते थे।


मंत्रिपरिषद की भूमिका महत्वपूर्ण थी। मंत्रियों की सहायता से राजा शासन करता था।



गुप्त साम्राज्य:


गुप्त शासन में अर्ध-केंद्रीयकृत प्रशासन था।


राजा की शक्ति सर्वोच्च थी लेकिन सामंतों और स्थानीय शासकों को अधिक स्वायत्तता दी गई थी।


गुप्त शासन में साम्राज्य के विभाजन के साथ-साथ प्रांतों (भुक्ति) और जिलों (विषय) का महत्व बढ़ा।


मंत्रियों की भूमिका बनी रही लेकिन स्थानीय शासन मजबूत हुआ।


2. प्रांतीय प्रशासन


मौर्य साम्राज्य:


साम्राज्य को चार प्रमुख प्रांतों में बाँटा गया था, जिनमें उत्तरापथ, दक्षिणापथ, पूर्वापथ और पश्चिमापथ शामिल थे।


हर प्रांत का प्रमुख अधिकारी कुम्भिक या महामात्र कहलाता था।


प्रत्येक प्रांत के अधिकारी सीधे केंद्र के प्रति उत्तरदायी थे।


गुप्त साम्राज्य:


गुप्तकाल में साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों को भुक्ति कहा जाता था।


भुक्ति का प्रमुख उपरिक या उपरिक महाराज कहलाता था।


गुप्त शासन में सामंतशाही का विकास हुआ। कई स्थानीय सामंतों को कर वसूलने और प्रांत की देखरेख करने की जिम्मेदारी दी जाती थी।


3. स्थानीय प्रशासन


मौर्य साम्राज्य:


स्थानीय प्रशासन के तहत नगर प्रशासन को प्राथमिकता दी गई।


नगरों का प्रशासन विशेष अधिकारियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें नगराध्याक्ष कहा जाता था।


ग्राम स्तर पर ग्रामिक और गोप नामक अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।


गुप्त साम्राज्य:


स्थानीय प्रशासन अधिक स्वायत्त था।


ग्राम प्रशासन में ग्रामसभा और पंचायतों की बड़ी भूमिका होती थी।


स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था गुप्तकाल में अधिक विकसित हुई।


4. कर प्रणाली


मौर्य साम्राज्य:


कर संग्रहण का जटिल और कठोर तंत्र था।


किसानों से भूमिकर लिया जाता था। व्यापार, उत्पादन, और अन्य कार्यों पर भी कर लगाए जाते थे।


कर एकत्र करने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।


गुप्त साम्राज्य:


गुप्तकालीन कर प्रणाली अपेक्षाकृत उदार थी।


किसानों से भूमि का छठा भाग कर के रूप में लिया जाता था।


सामंतों को कर वसूलने का अधिकार मिल गया था।


5. न्याय व्यवस्था


मौर्य साम्राज्य:


न्यायिक व्यवस्था कठोर और संगठित थी।


राजा न्याय का सर्वोच्च स्रोत था।


अपराधों के लिए कठोर दंड दिए जाते थे।


गुप्त साम्राज्य:


न्यायिक व्यवस्था में उदारता आई।


धर्मशास्त्रों और स्मृतियों के आधार पर न्याय किया जाता था।


राजा के अलावा सामंत और स्थानीय अधिकारी भी न्याय करते थे।


6. सेना और गुप्तचर व्यवस्था


मौर्य साम्राज्य:


मौर्य साम्राज्य की सेना विशाल और संगठित थी।


गुप्तचर विभाग अत्यंत मजबूत था और साम्राज्य की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता था।


गुप्त साम्राज्य:


गुप्त साम्राज्य की सेना मौर्यों की तुलना में कमजोर थी।


गुप्तचर तंत्र मौजूद था लेकिन उसका प्रभाव मौर्यकाल की तुलना में कम था।


मुख्य अंतर


1. मौर्य शासन केंद्रीयकृत था जबकि गुप्त शासन अर्ध-केंद्रीयकृत था।



2. मौर्यकाल में कठोर कर वसूली थी जबकि गुप्तकाल में कर प्रणाली अधिक उदार थी।


3. मौर्य साम्राज्य में अधिकारियों की नियुक्ति सीधे केंद्र से होती थी जबकि गुप्त साम्राज्य में सामंतों और स्थानीय स्वशासन की भूमिका अधिक थी।


निष्कर्ष


मौर्य और गुप्त प्रशासनिक तंत्र दोनों ही अपने समय में प्रभावी रहे। मौर्यकाल में प्रशासन अधिक कठोर, संगठित और केंद्रीकृत था जबकि गुप्त काल में प्रशासनिक उदारीकरण और स्थानीय स्वशासन का विकास हुआ। दोनों कालों ने प्रशासन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया और उनकी नीतियों ने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को दिशा दी।


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