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गोवा का स्वतंत्रता संग्राम

 गोवा का स्वतंत्रता संग्राम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जो पुर्तगाली शासन के खिलाफ लड़ा गया। गोवा पर पुर्तगाली उपनिवेश का शासन 1510 से 1961 तक था, और गोवा के स्वतंत्रता संग्राम ने इस अवधि के अंत में निर्णायक मोड़ लिया।


1. स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत:


पुर्तगाली शासन का अत्याचार: 20वीं सदी की शुरुआत में गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा। गोवा के लोग पुर्तगाली साम्राज्य की दमनकारी नीतियों, जैसे राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी, धार्मिक असहिष्णुता, और आर्थिक शोषण से परेशान थे।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बढ़ते प्रभाव ने गोवा में भी स्वतंत्रता की भावना को प्रेरित किया। गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे असहमति और सत्याग्रह आंदोलनों ने गोवा के लोगों को भी प्रेरित किया, लेकिन पुर्तगालियों ने इन आंदोलनों को कठोरता से कुचला।


2. गोवा में स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाएँ:


गोवा मुक्तिसंग्राम समिति की स्थापना (1947): भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भी गोवा पुर्तगाली साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। गोवा मुक्तिसंग्राम समिति (GMS) ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू किया। इस समिति के प्रमुख नेता थे लक्ष्मी नारायण बलवंत और राम मनोहर लोया, जिन्होंने गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए।


पुर्तगाली शासन के खिलाफ आंदोलन: 1950 के दशक में गोवा में कई आंदोलन चलाए गए। गोवा के लोग भारतीय संघ में शामिल होने के लिए एकजुट हो गए थे। इस आंदोलन में गोवा मुक्ति दल और गोवा स्वतंत्रता संघ जैसे संगठनों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।


गांधीजी के विचारों का असर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के विचारों का प्रभाव गोवा के स्वतंत्रता संग्राम पर पड़ा। गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने शांतिपूर्ण असहमति और सत्याग्रह के तरीके अपनाए, लेकिन पुर्तगाली शासन ने इन आंदोलनों को दमनकारी तरीके से दबाया।


3. भारतीय सरकार का समर्थन:


नेहरू सरकार की नीति: भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गोवा के मुद्दे को अपने एजेंडे में रखा और पुर्तगाल से गोवा को भारतीय संघ में शामिल करने की कोशिशें कीं। हालांकि, पुर्तगाल ने भारत के दबाव को नकारते हुए गोवा की स्वतंत्रता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।


नेहरू की कूटनीति: भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोवा को पुर्तगाल से मुक्त करने के लिए कूटनीतिक दबाव डालने की कोशिश की, लेकिन पुर्तगाल ने इसे नकारा। इसके बाद भारत ने सेना की मदद से गोवा के स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ पर पहुंचाया।


4. ऑपरेशन विजय (1961):


भारतीय सेना का हस्तक्षेप: 1961 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया, जो गोवा को पुर्तगाल से मुक्त करने के लिए किया गया था। भारतीय सेना ने गोवा के सभी प्रमुख किलों और इलाकों पर त्वरित कार्रवाई की और पुर्तगाली बलों को पराजित कर दिया।


पुर्तगाल की हार: भारतीय सेना की कार्रवाई के सामने पुर्तगाली सेना टिक नहीं सकी और 19 दिसम्बर 1961 को पुर्तगाली शासक ने गोवा को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए समर्पण किया। इस प्रकार गोवा 451 वर्षों के पुर्तगाली शासन के बाद भारत का हिस्सा बन गया।


5. स्वतंत्रता के बाद की स्थिति:


गोवा का समावेश: 19 दिसम्बर 1961 को गोवा को पुर्तगाल से मुक्त कर भारतीय संघ में शामिल किया गया। गोवा, दमन और दीव को भारतीय संघ में विलय कर लिया गया और 1962 में गोवा को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।


स्वतंत्रता संग्राम के नायक: गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नायकों ने योगदान दिया, जिनमें राम मनोहर लोया, लक्ष्मी नारायण बलवंत, हरी गोविंद सिंग और उदय देवन प्रमुख थे। इन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने बलिदान से गोवा को स्वतंत्रता दिलाई।


6. सारांश:


गोवा का स्वतंत्रता संग्राम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस संघर्ष ने न केवल गोवा के लोगों की भावना को जागृत किया, बल्कि पुर्तगाली साम्राज्य के खिलाफ भारतीय सेना की निर्णायक कार्रवाई के माध्यम से गोवा को स्वतंत्रता दिलाई। गोवा की स्वतंत्रता ने भारत की पूरी भूमि को एकजुट किया और पुर्तगाली साम्राज्य के भारतीय हिस्से का अंत किया।


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