गोवा में चालुक्य, कदंब और शिलाहार वंश का शासनकाल वहाँ के सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग रहा है। इन राजवंशों ने गोवा की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने के साथ ही इसे व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र भी बनाया।
1. चालुक्य वंश
शासनकाल और विस्तार:
चालुक्य वंश का प्रभाव गोवा में छठी से आठवीं शताब्दी के दौरान देखा जाता है। बादामी (वातापी) के चालुक्यों ने गोवा को अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया। पुलकेशिन द्वितीय (610-642 ई.) जैसे शक्तिशाली शासकों ने गोवा को रणनीतिक व्यापारिक स्थल के रूप में विकसित किया।
प्रभाव:
गोवा उस समय पश्चिमी तट के व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था।
वास्तुकला और मूर्तिकला में चालुक्य शैली की छाप देखने को मिलती है।
स्थानीय प्रशासन में चालुक्यों ने "महाजन" प्रणाली को प्रोत्साहित किया, जो गोवा के ग्रामीण और शहरी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
2. कदंब वंश
शासनकाल और स्थापना:
कदंब वंश गोवा का पहला स्वतंत्र स्थानीय राजवंश था, जिसने 10वीं से 14वीं शताब्दी तक शासन किया। इस वंश की स्थापना मयूर वर्मन ने की। बाद में जयंकेश्वर और शिवचित्त जैसे शासकों ने इसे और समृद्ध किया।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
1. वाणिज्य और व्यापार:
कदंबों के शासन में गोवा अरब सागर के व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
2. धार्मिक योगदान:
कदंब वंश ने शिव और विष्णु मंदिरों का निर्माण किया।
गोवा में ब्राह्मणवादी परंपराओं और वैदिक धर्म का पुनरुत्थान हुआ।
3. संस्कृति और वास्तुकला:
कदंब शैली की स्थापत्य कला विकसित हुई।
मयादेवी मंदिर और अन्य स्थापत्य स्मारक उस समय की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
पतन:
14वीं शताब्दी के अंत में विजयनगर साम्राज्य और बाद में बहमनी सल्तनत के उदय के कारण कदंब वंश का पतन हो गया।
3. शिलाहार वंश
शासनकाल:
शिलाहार वंश ने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक गोवा के उत्तरी और दक्षिणी भागों पर शासन किया। इस वंश का शासनकाल चालुक्य और कदंब वंश के बीच एक संक्रमण काल के रूप में देखा जा सकता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
1. प्रशासन:
शिलाहार शासकों ने चालुक्यों के अधीनस्थ के रूप में शासन करना शुरू किया लेकिन बाद में स्वतंत्र हो गए।
2. संस्कृति:
शिलाहारों ने कला और साहित्य को संरक्षण दिया।
उनकी शैली में बनाए गए मंदिर, गोवा की वास्तुकला परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
3. धार्मिक योगदान:
शिलाहारों ने जैन धर्म और वैदिक परंपराओं दोनों को प्रोत्साहन दिया।
पतन:
12वीं शताब्दी में होयसल और चालुक्यों के आक्रमणों के कारण शिलाहार वंश का पतन हो गया।
गोवा पर इन राजवंशों का प्रभाव
1. राजनीतिक योगदान:
इन राजवंशों ने गोवा को एक शक्तिशाली और संगठित प्रशासन प्रदान किया।
2. सांस्कृतिक विकास:
चालुक्य, कदंब और शिलाहार वंश ने गोवा की सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा दिया। कला, साहित्य, और वास्तुकला का अभूतपूर्व विकास हुआ।
3. आर्थिक प्रगति:
इन राजवंशों के शासनकाल में गोवा व्यापार और वाणिज्य का केंद्र बना, जिससे इसकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
4. धार्मिक समृद्धि:
इन शासकों ने वैदिक धर्म, जैन धर्म, और शैव-वैष्णव परंपराओं का संरक्षण किया, जिससे गोवा एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया।
निष्कर्ष:
चालुक्य, कदंब और शिलाहार वंशों के शासन ने गोवा को न केवल राजनीतिक स्थिरता दी बल्कि इसे सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी समृद्ध
किया। इस युग के दौरान स्थापित की गई परंपराएँ और संरचनाएँ आज भी गोवा के इतिहास और संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें