गोवा में पुर्तगाली शासन (1510–1961) लगभग 450 वर्षों तक चला, और इस अवधि में उन्होंने शासन व्यवस्था को अपने उपनिवेशीय उद्देश्यों के अनुरूप ढाला। उनका प्रशासनिक मॉडल यूरोपीय उपनिवेशवाद की विशिष्ट शैली का प्रतीक था, जिसमें राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक तत्व शामिल थे।
पुर्तगाली शासन व्यवस्था की विशेषताएँ:
1. प्रारंभिक शासन (1510-1600):
गोवा पर 1510 में अल्फांसो द अल्बुकर्क ने विजय प्राप्त की।
प्रारंभिक काल में पुर्तगाली सैन्य और व्यापारिक हितों पर ध्यान केंद्रित करते थे।
व्यापारिक केंद्र के रूप में गोवा का उपयोग किया गया और इसे "ओरिएंट का रोम" कहा जाने लगा।
2. प्रशासनिक संरचना:
गोवा पुर्तगाली साम्राज्य का एक प्रमुख प्रांत था और इसे "Estado da Índia" (भारत का राज्य) का मुख्यालय बनाया गया।
गवर्नर-जनरल: गोवा का सर्वोच्च प्रशासक गवर्नर-जनरल होता था, जो पुर्तगाल के राजा के प्रति जवाबदेह था।
प्रशासनिक डिवीज़न: गोवा को इल्हास (द्वीप), बारदेज़, और सालसेट जैसे प्रशासनिक खंडों में विभाजित किया गया।
3. न्याय व्यवस्था:
न्याय व्यवस्था पूरी तरह से यूरोपीय कानूनों पर आधारित थी।
1560 में गोवा इंक्विजिशन की स्थापना हुई, जो धार्मिक न्यायालय के रूप में कार्य करता था। यह हिंदुओं, मुसलमानों, और यहां तक कि ईसाइयों पर भी सख्ती करता था जो चर्च के आदेशों का पालन नहीं करते थे।
4. धार्मिक शासन और ईसाईकरण:
पुर्तगाली शासन के दौरान गोवा में कैथोलिक चर्च का प्रभुत्व स्थापित किया गया।
मिशनरियों को प्रशासनिक सहयोग दिया गया, और चर्च ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक मामलों में प्रमुख भूमिका निभाई।
हिंदू रीति-रिवाजों और पूजा स्थलों पर प्रतिबंध लगाए गए।
5. आर्थिक व्यवस्था:
गोवा को मसालों, वस्त्रों, और समुद्री व्यापार के लिए एक केंद्र के रूप में विकसित किया गया।
किसानों और व्यापारियों पर भारी कर लगाए जाते थे।
कई स्थानीय व्यापारिक गतिविधियों पर पुर्तगालियों का एकाधिकार था।
6. सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव:
पुर्तगालियों ने यूरोपीय वास्तुकला, संगीत, और खानपान को गोवा में बढ़ावा दिया।
गोवा की संस्कृति पर कैथोलिक प्रभाव पड़ा, जो आज भी स्थानीय त्योहारों, भाषा (कोंकणी में पुर्तगाली शब्द), और खानपान में दिखाई देता है।
स्थानीय कोंकणी भाषा को दबाने का प्रयास किया गया, और पुर्तगाली को प्राथमिकता दी गई।
7. 19वीं शताब्दी में सुधार:
19वीं शताब्दी में पुर्तगाल के उदारवादी आंदोलनों का असर गोवा में भी देखा गया।
स्थानीय आबादी को सीमित रूप से अधिकार दिए गए, और शिक्षा को बढ़ावा दिया गया।
1822 में गोवा में पहली बार छपाई मशीन आई, और प्रेस स्वतंत्रता पर धीरे-धीरे जोर दिया गया।
8. स्वतंत्रता आंदोलन और अंत:
20वीं शताब्दी में गोवा के लोग पुर्तगाली शासन के खिलाफ संगठित होने लगे।
1961 में भारतीय सेना ने "ऑपरेशन विजय" के तहत गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त किया।
इसके साथ ही गोवा भारत का हिस्सा बन गया।
निष्कर्ष:
पुर्तगाली शासन ने गोवा की राजनीति, समाज, और संस्कृति पर गहरा प्रभाव छोड़ा। हालांकि, यह शासन शोषणकारी और कठोर था, लेकिन इसने गोवा को अंतरराष्ट्रीय व्यापार और संस्कृति का केंद्र भी बनाया। आज गोवा में पुर्तगाली शासन के कई प्रभाव वास्तुकला, धर्म, और सामाजिक जीवन में देखे जा सकते हैं।
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